baj aur saanp class 8 | बाज और साँप

baj aur saanp class 8 | बाज और साँप

पाठ -17
बाज और साँप





 ध्वनि प्रस्तुति 



 पाठ परिचय 

baj aur saanp path parichay

निर्मल वर्मा की कहानी ‘बाज और साँप’ एक ‘बोध कथा’ है। इस कहानी के आधार दो पात्र हैं – बाज और साँप । इसमें साँप को कायर प्रकृति का जीव दिखाया गया है किन्तु बाज को स्वतंत्र प्रकृति का। यह बहुत ही सुन्दर कहानी है। इस कहानी के माध्यम से लेखक हमें बताना चाहते हैं कि किस तरह से हर प्राणी अपने स्वभाव के कारण अलग-अलग व्यवहार करता है। जिस तरह से एक साँप को कायर, डरकोप किस्म का बताया गया है और बाज को स्वतंत्र आजाद किस्म का, आसमान में स्वतंत्रता से उड़ना उसे बहुत अच्छा लगता है, जबकि साँप अपने ही बिल में चुप-चाप शांतिपवूर्क एक कायर जीवन व्यतीत करता है। 

baj aur saanp shabdarth
baj aur saanp word meaning


  • गुफा – अन्धेरा गड्ढा
  • तूफानी – बहुत तेज़
  • घाटियों – दो पर्वतों के बीच का पतला रास्ता
  • लपकती – वेग या गति
  • मिलाप – मिलन
  • गर्जन – घोर ध्वनि करने की क्रिया
  • टेढ़ी-मेढ़ी – तिरछी-मिरछी
  • बलखाती – लहराना
  • गर्जन-तर्जन – गड़गड़ाहट
  • एकाएक – अचानक
  • खून से लथपथ – भीगा हुआ 
  • ज़ख्मों – चोट 
  • अधमरा-सा – घायल
  • हाँफ – साँस की गति का तेज़ होना
  • फड़फड़ाता – छटपटाना
  • सिकुड़ना – सिमटना
  • भाँप – एहसास
  • अंतिम साँसें – मृत्यु के निकट
  • रेंगता – खिसकना
  • छीना-झपटी – एक दूसरे से कोई वस्तु छीनने की कोशिश
  • लंबी आह – साँस
  • आखिरी घड़ी – अंतिम समय
  • शिकायत – शिकवा
  • दुर्भाग्य – बुरा भाग्य
  • आनंद – खुशी
  • मुबारक – आनंद लेना
  • आरामदेह – आरामदायक
  • मूर्खता – बेवकूफ़ी
  • कौन-सा भारी – ज्यादा
  • दृष्टि – नज़र
  • बूते – दम
  • डींगं हाँकते – बढ़ा चढ़ा कर बात करना
  • गुण गाते – बड़ाई करना
  • चटृानों – पत्थर का बहुत बड़ा खंड 
  • भयानक – डरावना
  • भला – अच्छा
  • पक्की – निश्चित होना
  • खोखल – बड़ा छेद
  • स्वच्छंदता – आज़ादी
  • लेना-देना – मतलब
  • दुर्गंध – बदबू
  • सड़ – ख़राब
  • करुण – दया
  • सिटपिटा-सा – घबरा
  • एक क्षण – पल
  • वियोग – अलगाव
  • व्याकुल – परेशान
  • स्वतंत्रता – आज़ादी
  • ताकत – जान
  • कोशिश – प्रयास
  • हर्ज – फ़र्क
  • आशा – उम्मीद
  • दूने – दोगुने
  • उत्साह – उमंग
  • घायल – चोट खाया हुआ
  • लंबी साँस – चैन की साँस
  • हवा में कूद – उड़ जाना
  • बोझ – भार
  • लुढ़कता – फिसलता
  • थके-माँदे – थका-हारा
  • सफ़ेद फेन – झाग
  • सिर धुनने – शोक मनाने लगी
  • समुद्र के असीम – जिसकी कोई सीमा न हो
  • विस्तार – फैलाव
  • आँखों से ओझल – गायब होना
  • चट्टान की खोखल – खाली जगह
  • विषय – बारे में
  • असीम शून्यता – अपार शांति
  • आकर्षण – लगाव या खिंचाव
  • प्राण गँवा – मृत्यु को प्राप्त करना
  • रेंगने – साँप के चलने का तरीका या घसीटना
  • सिर चकराने – चक्कर आना
  • काँप-काँप – घबराना
  • प्राणों को खतरे – जान जोख़िम
  • चतुराई – चालाकी
  • चैन – सुकून
  • खजाना – कीमती समान जैसे सोना, ज़ेवर, पैसा आदि
  • कृपा – दया
  • आनंद – ख़ुशी
  • भर – तृप्त होना
  • सुख से अनजान – जिसे जानते न हो
  • नापना – छूना
  • ढेर-सी – बहुत सी
  • गर्व – सम्मान
  • श्रद्धा – भक्ति भाव
  • निडर – निर्भीक
  • कीमती – बहुमूल्य
  • रक्त – खून
  • बलिदान – न्योछावर
  • स्वर फूट – आवाज़ आना
  • प्राणों की बाजी – जान की परवाह न करना
  • क्षणभर – थोड़ी देर
  • लकीर-सा – रेखा-सी
  • विश्वास – भरोसा
  • झिलमिला – चमकना। 
  • अभागा – बुरी किस्मत
  • प्राणों की बाजी – जान की परवाह न करना
  • ठिकाना – आश्चर्यचकित
  • रहस्यमय – रहस्य से भरा



 Q&A 



प्रश्न 1: घायल होने के बाद भी बाज ने यह क्यों कहा,” मुझे कोई शिकायत नहीं है।” विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर : बाज ने अपने जीवन को व्यर्थ नहीं जाने दिया। उसने सदैव जीवन के द्वारा दिए गए सुख व दुख को समान भाव से भोगा। उसने आकाश की असीम ऊँचाइयों को भी अपने पंखों द्वारा नाप डाला था। उसने कभी डर से आकाश में उड़ना नहीं छोड़ा। जब तक उसके शरीर में ताकत रही। ऐसा कोई कार्य व सुख नहीं था जो उसने किया ना हो, उसने जीवन के समस्त सुखों का आनंद लिया था जिससे वह पूर्ण रूप से आश्वस्त था।

प्रश्न 2: बाज ज़िंदगी भर आकाश में ही उड़ता रहा फिर घायल होने के बाद भी वह उड़ना क्यों चाहता था ?

उत्तर : साँप की गुफा को देखकर बाज को अन्दर ही अन्दर साँप के जीवन से घृणा हो गई थी। वह साँप को उस दुर्गन्ध भरी अंधेरी गुफा में प्रसन्न देखकर उसके जीवन के लिए उसे धिक्कार रहा था। वह जान गया था कि इस साँप ने कभी इस गुफा से आगे का जीवन देखा ही नहीं है। वह अपना अन्तिम समय उसी तरह जीना चाहता था जब वह पूर्ण रूप से स्वस्थ था।वह फिर से उस आनन्द का सुख पाना चाहता था जो सदैव उड़ते हुए उसे प्राप्त होता था। वह साँप की उस अन्धेरी गुफा में अपने प्राणों को त्यागकर अपना अन्तिम समय व्यर्थ नहीं जाने देना चाहता था। उसने सदैव बहादुरी से जीवन यापन किया था। अपने अंतिम समय में भी उस बहादुरी का परिचय देते हुए अपने जीवन की सार्थकता को सिद्ध करना चाहता था। यही उसका लक्ष्य था इसलिए उसने अंतिम उड़ान भरने का निर्णय लिया।

प्रश्न 3: साँप उड़ने की इच्छा को मूर्खतापूर्ण मानता था। फिर उसने उड़ने की कोशिश क्यों की ?

उत्तर : साँप के लिए आकाश में उड़ना कोई महत्वपूर्ण बात नहीं थी। उसके लिए उड़ना और रेंगना समान प्रक्रिया थी। परन्तु अन्त समय में बाज को उड़ान के लिए प्रयत्नशील होता देखकर उसके मन में भी उड़ने के लिए जिज्ञासा जग गई। वह भी सोच में पड़ गया कि आखिर इस आकाश में है क्या? जोकि बाज अन्तिम समय में भी, इतनी बुरी दशा होने के बाद भी उड़ना चाहता था। इसलिए उसने भी मन ही मन एक बार उड़ने का निश्चय किया।

प्रश्न 4: बाज के लिए लहरों ने गीत क्यों गाया था?

उत्तर : बाज की साहस और वीरता के लिए लहरों ने उसके सम्मान में गीत गाया। बाज ने जिस तरह अपने प्राणों की परवाह न करते हुए अपना जीवन यापन किया व अपने अन्त समय भी बहादुरी का परिचय देते हुए व्यतीत किया, लहरों के लिए बहुत शिक्षाप्रद था। वह इसका प्रसार समस्त संसार में अपने गीत के माध्यम से कर देना चाहती थी ताकि समस्त संसार बाज के जीवन से प्रेरणा ले और अपना जीवन स्वतंत्रता, साहस पूर्वक बिताए व समाज में मिसाल कायम कर सके। लहरों का गीत उन दीवानों के लिए था जो मर कर भी मृत्यु से नहीं डरते बल्कि उसका सामना हँसकर करते हैं।

प्रश्न 5 : घायल बाज को देखकर साँप खुश क्यों हुआ होगा?

उत्तर : साँप, बाज की मूर्खता पर हँस रहा था। उसके अनुसार बाज ने अपना समस्त जीवन व्यर्थ में उड़ने में व्यतीत कर दिया था। दूसरी ओर वह उसका परम शत्रु था क्योंकि बाज के होने के कारण साँप और बाज के बीच जाति से शत्रुता होती है। घायल बाज को देखकर साँप के लिए खुश होना स्वाभाविक ही था।

प्रश्न 6 : कहानी में से अपनी पसंद के पाँच मुहावरे चुनकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

उत्तर: (1) भाँप लेना – दादाजी की गिरती साँसें देखकर माता जी ने स्थिति भाँप ली व तुरन्त डाक्टर को बुलवा लिया।
(2) हिम्मत बाँधना – कम नम्बर आने पर पिताजी ने दुबारा मेहनत करने के लिए मेरी हिम्मत बांधी।
(3) लम्बी आह भरना – ज्योति को बीमार देखकर माता जी ने लम्बी आह भरी।
(4) मन में आशा जागना– किशन की वीरतापूर्ण बातों ने मेरे मन में आशा जगा दी।
(5) प्राण हथेली में रखना– गौरव ने प्रथा की जान बचाने के लिए अपने प्राणों को हथेली में रख दिया।


प्रश्न  2: ‘आरामदेह’ शब्द में ‘देह’ प्रत्यय है। ‘देह’ ‘देनेवाला’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। देनेवाला के अर्थ में ‘द’, ‘प्रद’, ‘दाता’, ‘दाई’ आदि का प्रयोग भी होता है, जैसे – सुखद, सुखदाता, साखदाई, सुखप्रद। उपर्युक्त समानार्थी प्रत्ययों को लेकर दो – दो शब्द बनाइए।

उत्तर :

प्रत्यय     शब्द

          – सुखद, दुखद
दाता     – परामर्शदाता, सुखदाता
दाई      – सुखदाई, दुखदाई
देह       – विश्रामदेह, लाभदेह, आरामदेह
प्रद       – लाभप्रद, हानिप्रद, शिक्षाप्रद




चील, बाज़ और गिद्ध में क्या अंतर है?




चील

चील एक शिकारी पक्षी है जो अपने तेज, शक्तिशाली और अचानक झपट्टे के लिए मशहूर है। यह एक माध्यम आकर की बेहद आक्रामक चिड़िया है जो छोटे छोटे जंतुओं का शिकार करती है। ये गिद्ध की तुलना में छोटी और हलकी होती है।
चील Accipitridae फैमिली से सम्बन्ध रखने वाला प्राणी है। यह माध्यम आकार का पक्षी है। चील का सर छोटा, चोंच भी छोटी किन्तु नुकीली और पॉइंटेड होती है पर पंख लम्बे और संकरे होते हैं। चील का चेहरा आंशिक रूप से नंगा होता है। इसकी पूंछ अंग्रेजी के V शेप में होती है। अलग अलग प्रजातियों में इनके आकार और वजन में अंतर पाया जाता है। इनका वजन 270 ग्राम से 1 किलोग्राम से अधिक हो सकता है। इनका आकर 34 सेंटीमीटर से 66 सेंटीमीटर तक हो सकता है। सबसे छोटा मिसिसिपी काइट 34 से 37 सेंटीमीटर के होते हैं जबकि रेड काइट सबसे लम्बे 60 से 66 सेंटी मीटर तक के पाए जाते हैं। 

Kite, Black, Predator, Bird, Nature
चील अन्टार्टिका को छोड़कर प्रायः दुनिया भर में पाया जाता है। चील प्रायः घोंघों, सरीसृपों,मछली, गौरैयों और कीड़े मकोड़ों का शिकार करते हैं। कुछ चील मृतजीवों को भी खाते हैं।

चील काफी ऊँची उड़ान भरते हैं। ये अपने पंखों को फड़फड़ा कर काफी ऊंचाई पर चले जाते हैं और फिर वहां से वे ग्लाइड करते हुए उड़ते हैं। चील अपने शिकार की खोज में ग्लाइड करते हैं।
चील की कई प्रजातियां हैं जैसे रेड काइट, ब्लैक काइट, ब्रह्मनि काइट, स्नैल काइट आदि।
चील अंडे देने के पहले घोसला बनाते हैं। ये अपना घोसला काफी ऊंचाई पर बनाते हैं। कई बार ये अपना घोसला ऊँचे और चट्टानों के किनारे जो किसी अन्य के पंहुच से बाहर हो वहां पर बनाते हैं। चील एक ही मादा के साथ पुरे मैटिंग सीजन में रहते हैं। कई चील तो आजीवन एक ही मादा के साथ रहते हैं। ये एक बार में प्रायः एक से तीन अंडे देते हैं। बच्चे लगभग एक महीने तक सेने के बाद निकलते हैं।


बाज़

बाज़ एक खूंखार शिकारी पक्षी होता है जो छोटे छोटे जंतुओं को अपना शिकार बनाता है। यह काफी तेज गति से उड़ने में माहिर होते हैं और पलक झपकते ही अपना शिकार ले उड़ते हैं। 

Adler, Raptor, Bird Of Prey, Bird

बाज़ काफी मजबूत पक्षी होता है जिसकी छाती की माँसपेशियन सुदृढ़ और काफी विकसित होती हैं। इनके पंख लम्बे और स्ट्रीमलाइन आकार के होते हैं जो इन्हे तेज उड़ने में सहायता पँहुचाते हैं। बाज़ के शरीर की लम्बाई 13 से 23 इंच होती है और इसके पंख लगभग 29 से 47 इंच लंबे होते हैं। बाज़ की नाक पर एक ट्यूबर सेल होती है जो रफ़्तार में इसे सांस लेने में मदद करती है। मादा बाज़ आकार में नर से ज्यादा बड़ी होती हैं। ये नीले, भूरे ये सलेटी रंग के होते हैं जिसमे पेट तथा गर्दन पर सफ़ेद धब्बे होते हैं। बाज़ के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं। 

Eagle, Bird, Bird Of Prey, Natural

बाज़ दुनियां में सबसे तेज उड़ने वाले पक्षी होते हैं। इनकी गति लगभग 320 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है। बाज़ आसमान ही नहीं बल्कि जमीन पर भी सबसे तेज दौड़ता है। बाज़ बत्तख, चमगादड़, चूहे, गिरगिट आदि का शिकार करते हैं। बाज़ करीब 17 वर्षों तक जीवित रहते हैं। मादा बाज़ एक बार में 3 से 5 अंडे देती हैं। ये दो से तीन वर्षों में प्रजनन करती हैं।
बाज़ अंटार्टिका के अलावा पूरी दुनियां में पाया जाता है। इसकी 1500 से 2000 प्रजातियां होती हैं। 

 
गिद्ध 

शिकारी पक्षियों का जब भी जिक्र होता है तो उसमे गिद्ध का नाम सबसे ऊपर आता है। गिद्ध शानदार शिकारी होते हैं जो अपने बड़े डील डौल, ताकत और अपने भारी वजन के साथ साथ एक पैनी और बड़ी चोंच से आसानी से पहचान में आ जाते हैं। गिद्ध अपनी तेज आँख और मुर्दाखोरी की वजह से काफी मशहूर हैं। इन्हें प्रकृति का सफाईकर्मी भी कहा जाता है। 

गिद्ध एक बड़ा शिकारी पक्षी है बल्कि यह सबसे बड़े शिकारी पक्षियों में से एक होता है। बड़े होने के साथ साथ गिद्ध काफी वजनी भी होते हैं। इनका वजन 1.5 किलोग्राम से लेकर 11 किलोग्राम तक हो सकता है। गिद्ध की लम्बाई 56 सेंटीमीटर लेकर 130 सेंटीमीटर तक होती है। इनके शरीर का वजन और माप अलग अलग प्रजातियों में अलग अलग होती है। इसी तरह अलग अलग प्रजातियों में गिद्धों के पंखों का फैलाव भी भिन्न भिन्न होता है। यह 1.30 मीटर से लेकर 2.6 मीटर तक होता है। ये पक्षियों की फैमिली Vulturidae से सम्बन्ध रखते हैं। गिद्ध प्रायः कत्थई और काले रंग के होते हैं। इनकी चोंच आगे की ओर मुड़ी और मजबूत होती है। किन्तु इनके पंजे मजबूत नहीं होते हैं। गिद्धों के गर्दन पर रोयें नहीं होते हैं। 

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गिद्धों की पुरे विश्व में लगभग 21 प्रजातियां इस समय पायी जाती हैं। विश्व में गिद्धों की संख्या तेजी से घट रही है। इसका मुख्य कारण इसका ऐसे जीवों के मृत शरीर को खाना है जिन्हे पशुपालकों द्वारा दर्दनाशक दवा डिक्लोफेनाक दिया गया हो। ऐसे जानवर का मांस खाने से गिद्धों के गुर्दे ख़राब हो जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है। इसके अलावा बहुत सारे गिद्धों को शिकार करके मनुष्य मार देता है। इसी वजह से गिद्ध आज लुप्तप्रायः जीवों में शामिल है।
गिद्ध पांच वर्ष में प्रजनन के योग्य होते हैं। ये एक बार में एक से दो अंडे देते हैं। यदि किसी वजह से इनके अंडे नष्ट हो गए हो तो फिर ये अगले साल तक प्रजनन नहीं करते। गिद्ध अपना घोसला खड़ी चट्टानों के मध्य या काफी ऊँचे पेड़ों पर बनाते हैं।

गिद्ध की नज़र बहुत ही तेज मानी जाती है। ये काफी ऊंचाई से ही अपना शिकार देख लेते हैं। गिद्ध छोटे छोटे जंतुओं, मुर्गी के बच्चों को, मछलियों को अपना शिकार बनाते हैं। गिद्ध अपने भोजन में हड्डियों को भी काफी मात्रा में शामिल करते हैं। इनका पेट इन हड्डियों को आसानी से पचा लेता है। गिद्ध को प्रकृति का सफाईकर्मी भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये मरे हुए जानवरों के शरीर को खा कर वातावरण साफ़ करते हैं। मरे हुए जानवर पर बैठ कर खाने से इनके पैरों में कई बैक्टेरिया आदि लग जाते हैं जिससे इनके बीमार होने का खतरा होता है किन्तु इनकी पेशाब कीटाणुनाशक का काम करती है और ये अपने पैरों को उसी से धो लेते हैं। गिद्ध अपने शिकार पर नजर रखने के लिए काफी ऊंचाई पर उड़ते हैं।



बाज और साँप की व्याख्या
 बाज और साँप पाठ का सरलार्थ 


समुद्र के किनारे ऊँचे पर्वत की अँधेरी गुफा में एक साँप रहता था। समुद्र की तूफानी लहरें धूप में चमकतीं, झिलमिलातीं और दिन भर पर्वत की चट्टानों से टकराती रहती थीं।
लेखक कहते हैं कि एक समय की बात है, समुद्र के किनारे ऊँचे पर्वत की अँधेरी गुफा में एक साँप रहता था। समुद्र की लहरे बहुत तेज तूफानी रूप ले लेती थी और घूप में चमकती, झिलमिलातीं पर्वत की चट्टानों से टकराती रहती। ऐसा दृष्य समुद्र के किनारे अक्सर देखने को मिलता है। कुछ ऐसा ही दृष्य कहानी में लेखक द्वारा प्रस्तुत किया गया है कि समुद्र के किनारे गुफा है, उसमें एक साँप रहता है और वहाँ पर समुद्र के किनारे जो लहरें हैं वह धूप में चमकतीं, झिलमिलातीं सुन्दर दिखाई देती है।

पर्वत की अँधेरी घाटियों में एक नदी भी बहती थी। अपने रास्ते पर बिखरे पत्थरों को तोड़़ती, शोर मचाती हुई यह नदी बड़े जोर से समुद्र की ओर लपकती जाती थी।
लेखक कहते हैं कि पर्वतों के बीच में अँधेरी घाटियों में एक नदी भी बहती थी। वह नदी अपने रास्ते पर बिखरे पत्थरों को तोड़़ती हुई, शोर मचाती हुई अपने तेज़ वेग के साथ समुद्र की ओर बहती जाती थी। अक्सर पहाड़ों से निकल कर झरने, नदियाँ आखिर में समुद्र में जा मिलते हैं।

जिस जगह पर नदी और समुद्र का मिलाप होता था, वहाँ लहरें दूध के झाग-सी सफेद दिखाई देती थीं। अपनी गुफा में बैठा हुआ साँप सब कुछ देखा करता। लहरों का गर्जन, आकाश में छिपती हुई पहाड़ियाँ, टेढ़ी-मेढ़ी बलखाती हुई नदी की गुस्से से भरी आवाज़ें।
जहाँ समुद्र और नदी का मिलन हो रहा हो, वहाँ पर तेज धारा के कारण ऐसा लगता है जैसे कुछ सफेद दूध के झाग बन रही हो। अपनी गुफा में बैठा हुआ साँप यह नजारा अक्सर देखा करता था कि सामाने नदी बह रही है और उनसे बहुत तेज आवाज निकलती है। जब अँधेरा हो जाता है तो घने आकाश में पहड़िया भी छुप  जाती है और पहाड़ियों से टेढ़ी-मेढ़ी बहती हुई नदी, गुस्से से भरी आवाज़ें निकालती हुई समुद्र की और बढ़ती जा रही है।

वह मन ही मन खुश होता था कि इस गर्जन-तर्जन के होते हुए भी वह सुखी और सुरक्षित है। कोई उसे दुख नहीं दे सकता। सबसे अलग, सबसे दूर, वह अपनी गुफा का स्वामी है। 
लेखक कहते हैं कि यह नजारा देखकर साँप बहुत ही प्रसन्न होता था क्योंकि उसे ऐसा लगता था कि लहरों की गड़गड़ाहट के होते हुए भी वह सुखी और सुरक्षित है उसे किसी तरह का भय नहीं है, उसे किसी तरह का खतरा नहीं है। साँप यह सोचा करता था कि कोई उसे दुख नहीं दे सकता, वहाँ उसे कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि वह वहाँ सबसे अलग, सबसे दूर एकांत में रहता था और वह अपनी गुफा का स्वामी है, कोई उसे वहाँ से निकाल नहीं सकता था।

न किसी से लेना, न किसी से देना। दुनिया की भाग-दौड़, छीना-झपटी से वह दूर है। साँप के लिए यही सबसे बड़ा सुख था। 
लेखक कहते हैं कि साँप अपने जीवन से बहुत सुखी था क्योंकि उसका किसी से कोई मतलब नहीं था, न ही किसी से कुछ लेना था, न ही किसी को कुछ देना था।  दुनिया की भाग-दौड़ से वह बहुत दूर रहता था। उसे किसी चीज़ की ऐसी आवश्यकता नहीं है कि किसी से छीन कर उसे अपना पेट भरना पड़े। वह अपने इस जीवन में बहुत ही सुख महसूस करता था क्योंकि वह दुनिया की हर परेशानी से कोसों दूर था।

एक दिन एकाएक आकाश में उड़ता हुआ खून से लथपथ एक बाज साँप की उस गुफा में आ गिरा। उसकी छाती पर कितने ही ज़ख्मों के निशान थे, पंख खून से सने थे और वह अधमरा-सा जोर-शोर से हाँफ रहा था। 
लेखक कहते हैं कि एक दिन अचानक आकाश से उड़ता हुआ एक बाज, बहुत ही घायल अवस्था में साँप की गुफा के आगे आ गिरा। वह पूरा खून से लथपथ था और उसकी छाती पर अनेक जख्मों के निशान थे। उसके पंख खून से सने हुए थे और घायल अवस्था में उसकी साँसों की गति बहुत तेज़ थी। 

जमीन पर गिरते ही उसने एक दर्द भरी चीख मारी और पंखों को फड़फड़ाता हुआ धरती पर लोटने लगा। डर से साँप अपने कोने में सिकुड गया। किंतु दूसरे ही क्षण उसने भाँप लिया कि बाज जीवन की अंतिम साँसें गिन रहा है और उससे डरना बेकार है। यह सोचकर उसकी हिम्मत बँधी और वह रेंगता हुआ उस घायल पक्षी के पास जा पहुँचा। 
लेखक कहते हैं कि जैसे ही वह बाज़ जमीन पर गिरा वह दर्द के मारे झटपटाने लगा क्योंकि वह बहुत ही कष्ट में था, उसे बहुत दर्द हो रहा था। साँप को लगा कि कोई जानवर है जोकि उसे हानि पहुँचा सकता है, इस कारण डर के मारे साँप एक कोने में जाकर सिमट गया। दूसरे ही पल  में उसे सच्चाई का पता चल गया कि बाज जीवन की अंतिम साँसे गिन रहा है क्योंकि वह बहुत ही घायल अवस्था में है और उसकी मौत होने वाली है, उससे डरना बेकार है। उसने अपनी हिम्मत बाँधी और खिसकता हुआ वह उस घायल बाज़ पक्षी के पास जा पहुँचा। 

उसकी तरफ कुछ देर तक देखता रहा, फिर मन ही मन खुश होता हुआ बेाला- “क्यों भाई, इतनी जल्दी मरने की तैयारी कर ली?’’
बाज ने एक लंबी आह भरी “ऐसा ही दिखता है कि आखिरी घड़ी आ पहुँची है लेकिन मुझे कोई शिकायत नहीं है। 
लेखक आगे बताते हैं कि साँप ने देखा कि बाज बहुत ही घायल अवस्था में है दर्द से कहर रहा था तो वह उसके नजदीक गया और कुछ क्षण तक उसे देखता रहा और फिर मन ही मन खुश होता हुआ बेाला कि क्यों भाई, इतनी जल्दी मरने की तैयारी कर ली? बाज ने एक लंबी ठण्डी साँस भरी और साँप से कहा कि उसे भी ऐसा ही लग रहा है कि अब उसकी मौत का समय आ पहुँचा है। लेकिन उसे अपने जीवन से कोई गिला नहीं है क्योंकि उसने अपना जीवन बहुत खुशी पूर्वक जिया है, स्वतंत्रता से जिया है। 

मेरी जिंदगी भी खूब रही भाई, जी भरकर उसे भोगा है। जब तक शरीर में ताकत रही, कोई सुख ऐसा नहीं बचा जिसे न भोगा हो। दूर-दूर तक उड़ानें भरी हैं, आकाश की असीम ऊँचाइयों को अपने पंखों से नाप आया हूँ। 
अब बाज अपने जीवन की कहानी साँप को सुना रहा है और कहता है कि उसका जीवन बहुत ही सुखी रहा है। जब तक उसके जीवन में जान थी, उसने अपने जीवन को खुब जीया। वह साँप को बताता है कि वह खुले आसमान में ऊँचाई तक उड़ा। पूरे आसमान में उसने खुब उड़ाने भरी है, ऊँचाइयों को अपने पंखों से नापा है।
तुम्हारा बड़ा दुर्भाग्य है कि तुम जिंदगी भर आकाश में उड़ने का आनंद कभी नहीं उठा पाओगे।’’ साँप बोला- ’’आकाश! आकाश को लेकर क्या मैं चाटूँगा!
बाज साँप को कहता है कि साँप बहुत भाग्यहीन है क्योंकि वह आकाश में कभी नहीं उड़ सकता। ईश्वर ने वह शक्ति उसे नहीं दी है। वह आकाश में उड़ने की ख़ुशी कभी महसूस नहीं कर सकता। बाज़ की इन बातों को सुन कर साँप कहता है कि आकाश का मैनें क्या करना है? मैं अपने यहाँ पर प्रसन्न हूँ, खुश हूँ ऐसा ही मेरा जीवन है।

आकाश में आखिर रखा क्या है? क्या मैं तुम्हारे आकाश में रेंग सकता हूँ। ना भाई, तुम्हारा आकाश तुम्हें ही मुबारक, मेरे लिए तो यह गुफा भली। इतनी आरामदेह और सुरक्षित जगह और कहाँ होगी?’’ 
साँप आगे बाज से कहता है कि आसमान में ऐसी क्या बात है। आसमान में तो उड़ा ही जा सकता है जो पक्षियों का काम है। क्या वह आकाश में रेंग सकता है? साँप बाज़ से कहता है कि उसका आसमान उसी को मुबारक हो ,उसके लिए तो यह गुफा ही सही है। इस गुफा से सुरक्षित जगह और कहीं नहीं हो सकती है, वह यहाँ सुरक्षित महसूस करता है। उसे वहाँ किसी से कोई हानि नहीं है। कोई उसे नुक्सान नहीं पहुँचा सकता। 

साँप मन ही मन बाज की मूर्खता पर हँस रहा था। वह सोचने लगा कि आखिर उड़ने और रेंगने के बीच कौन-सा भारी अंतर है। अंत में तो सबके भाग्य में मरना ही लिखा है – शरीर  मिटृी का है, मिटृी में ही मिल जाएगा।
साँप को ऐसा लग रहा था कि बाज एक मूर्ख पक्षी है और वह उसकी बातों पर मन-ही-मन हँस रहा था कि आसमान में उड़ने पर वह घायल हुआ है फिर भी उड़ने की बात कर रहा है। रेंगने में और उड़ान भरने में साँप को कोई ज्यादा अंतर नहीं लग रहा था। साँप को ईश्वर ने रेंगने की शक्ति दी है और पक्षियों को उड़ान भरने की। साँप सोच रहा था कि जीवन के अंत में तो सभी को मरना ही है क्योंकि यह शरीर मिट्टी का बना है और मिट्टी में ही मिल जाना है, तो कोई रेंगे या उड़े क्या फर्क है। 

अचानक बाज ने अपना झुका हुआ सिर ऊपर उठाया और उसकी दृष्टि साँप की गुफा के चारों ओर घूमने लगी। चटृानों में पड़ी दरारों से पानी गुफा में टपक रहा था। सीलन और अँधेरे में डूबी गुफा में एक भयानक दुर्गंध फैली हुई थी, मानो कोई चीज वर्षों से पड़ी-पड़ी सड़ गई हो। 
साँप ने जब यह कहा कि बाज़ के आसमान से उसकी गुफा ज्यादा अच्छी और सुरक्षित है तो बाज़ ने अपना सिर थोड़ा ऊपर उठाया और साँप की गुफा के चारों ओर से ध्यान से देखने लगा। बाज़ ने देखा कि गुफा की दरारों से पानी टपक रहा था। वहाँ पर भयानक अँधेरा था, वहाँ से बहुत ही गन्दी बदबू आ रही थी क्योंकि वहाँ पर कोई सूरज की किरणें नहीं पहुँचती थी। वह दुर्गंध ऐसी थी जैसे की वहाँ पर कोई चीज वर्षों से पड़ी-पड़ी सड़ रही हों, बेकार हो रही हों। 

बाज के मुँह से एक बड़ी जोर की करुण चीख फूट पड़ी – ’’आह! काश, मैं सिर्फ एक बार आकाश में उड़ पाता।’’ 
बाज की ऐसी करुण चीख सनुकर साँप कुछ सिटपिटा-सा गया। एक क्षण के लिए उसके मन में उस आकाश के प्रति इच्छा पैदा हो गई जिसके वियोग में बाज इतना व्याकुल होकर छटपटा रहा था। 
जब बाज़ ने साँप की गुफा को देखा तो उसके मुँह से एक बहुत ही दर्द भरी चीख निकल पड़ी कि काश वह सिर्फ एक बार फिर से आकाश में उड़ान भर पाता। उसकी चीख सुनकर साँप कुछ घबरा गया क्योंकि उसकी आवाज में बहुत करूणा थी, दर्द था। एक पल के लिए साँप के मन में भी उस आकाश में उड़ान भरने के प्रति इच्छा पैदा हो गयी। उसे लगने लगा कि आकाश में ऐसा क्या है, जो बाज़ मरने की अवस्था में भी उड़ना चाहता है। 

उसने बाज से कहा- ’’यदि तुम्हें स्वतंत्रता इतनी प्यारी है तो इस चटृान के किनारे से ऊपर क्यों नहीं उड़ जाने की कोशिश करते। हो सकता है कि तुम्हारे पैरों में अभी इतनी ताकत बाकी हो कि तुम आकाश में उड़ सको। कोशिश करने में क्या हर्ज है?’’ 
साँप बाज की बात सुन कर उससे कहता है कि यदि उसे आकाश में उड़ना इतना ही पसंद है और उसे अपनी आज़ादी इतनी ही ज्यादा अच्छी लगती है तो उसे गुफा की चट्टान के किनारे से उड़ने की कोशिश करनी चाहिए। साँप बाज़ से कहता है कि हो सकता है उसके पैरों में अभी इतनी ताकत हो कि वह उड़ने में कामयाब हो सके। वह एक कोशिश तो कर ही सकता है आखिर कोशिश करने में क्या बुराई है। 

बाज में एक नयी आशा जग उठी। वह दूने उत्साह से अपने घायल शरीर को घसीटता हुआ चट्टान के किनारे तक खींच लाया। खुले आकाश को देखकर उसकी आँखें चमक उठीं। उसने एक गहरी, लंबी साँस ली और अपने पंख फैलाकर हवा में कूद पड़ा।
साँप की बातें सुन कर बाज में एक नयी उम्मीद जग उठी, उसने भी सोचा कि कोशिश करने में तो कोई बुराई नहीं है। बाज का साहस साँप की बातों से दोगुना हो गया था, वह पूरे साहस के साथ अपने घायल शरीर को किसी तरह घसीट कर चट्टान के किनारे तक ले आया। जब बाज़ ने खुले आसमान को देखा तो उसकी आँखों में वही पुरानी चमक लौट आई। उसने पूरे विश्वास के साथ एक लम्बी साँस भरी, अपने पंखों को फैलाया और बिना देर किए उड़ान भरने के लिए हवा में कूद पड़ा।

किंतु उसके टूटे पंखों में इतनी शक्ति नहीं थी कि उसके शरीर का बोझ सँभाल सकें। पत्थर-सा उसका शरीर लुढ़कता हुआ नदी में जा गिरा। एक लहर ने उठकर उसके पंखों पर जमे खून को धो दिया।
बाज़ ने पूरे साहस के साथ उड़ान तो भरी परन्तु उसके घायल टूटे हुए पंखों में अब इतनी ताकत नहीं बची थी कि वे उसके शरीर का पूरा भार उठा पाते। उसका शरीर पत्थर की तरह लुढ़कता हुआ नदी में जा गिरा। नदी की एक लहर ने उसके पंखों पर जमे हुए खून को धो दिया। बाज़ अपने घायल पंखों के कारण उड़ने में सफल न हो सका। 

उसके थके-माँदे शरीर को सफ़ेद फेन से ढ़क दिया, फिर अपनी गोद में समेटकर उसे अपने साथ सागर की ओर ले चली। लहरें चट्टानों पर सिर धुनने लगीं मानो बाज की मृत्यु पर आँसू बहा रही हों। धीरे-धीरे समुद्र के असीम विस्तार में बाज आँखों से ओझल हो गया।
उसके थके-हारे शरीर को नदी में उठने वाली सफ़ेद झाग ने ढ़क दिया, फिर नदी ने बाज़ को अपनी गोद में समेटकर उसे अपने साथ सागर की ओर ले चली। लहरें चट्टानों से टकराने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे लहरें बाज की मौत पर चट्टानों से अपना सिर पटक-पटक कर आँसू बहा रही हों। धीरे-धीरे समुद्र के कभी न समाप्त होने वाले विस्तार में बाज आँखों से ओझल हो गया, उसे देख पाना संभव नहीं हो पा रहा था, वह समुद्र में कहीं गायब हो गया था।
 
चट्टान की खोखल में बैठा हुआ साँप बड़ी देर तक बाज की मृत्यु और आकाश के लिए उसके प्रेम के विषय में सोचता रहा। 

’’आकाश की असीम शून्यता में क्या ऐसा आकर्षण छिपा है जिसके लिए बाज ने अपने प्राण गँवा दिए?
बाज़ की मौत के बाद चट्टान की खाली जगह पर बैठा हुआ साँप बहुत देर तक बाज की मौत और आसमान की उड़ान के लिए उसके प्रेम के विषय में सोचता रहा कि आसमान की अपार शक्ति में ऐसा कौन सा लगाव छिपा है, जिसके लिए बाज ने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। उड़ान में ऐसा कौन सा आनन्द है जिसके लिए बाज़ ने मौत के करीब होते हुए भी उड़ान भरने की अंतिम कोशिश की। 

वह खुद तो मर गया लेकिन मेरे दिल का चैन अपने साथ ले गया। न जाने आकाश में क्या खजाना रखा है? एक बार तो मैं भी वहाँ जाकर उसके रहस्य का पता लगाऊँगा चाहे कुछ देर के लिए ही हो। कम से कम उस आकाश का स्वाद तो चख लूँगा।’’
बाज़ की मौत के बाद साँप सोच रहा है कि बाज़ खुद तो मर गया लेकिन उसके दिल के चैन को अपने साथ ले गया। क्योंकि अब साँप भी जानना चाहता था कि आखिर आसमान में कौन-सा खजाना छिपा हुआ है? साँप ने यह निश्चय कर लिया कि एक बार तो वह भी आकाश में जाकर उसके रहस्य का पता जरूर लगाएगा। चाहे कुछ देर के लिए ही क्यों न हो। कम से कम एक बार वह अवश्य उस आकाश का स्वाद तो चख ही लेगा और जान कर रहेगा कि बाज़ किस आनंद की बात कर रहा था। 

यह कहकर साँप ने अपने शरीर को सिकोड़ा और आगे रेंगकर अपने को आकाश की शून्यता में छोड़ दिया। धूप में क्षणभर के लिए साँप का शरीर बिजली की लकीर-सा चमक गया।
जब साँप ने निश्चय कर लिया कि वह एक बार जरूर आसमान में उड़ान भर कर उस आनंद का पता लगाएगा जिसकी बात बाज़ कर रहा था तो साँप ने अपने शरीर को समेटा और चट्टान पे आगे रेंगकर अपने को आसमान की अपार शक्ति में छोड़ दिया। लेखक कहते हैं कि धूप में कुछ पल के लिए साँप का शरीर बिजली की एक रेखा की तरह चमक गया था।

किंतु जिसने जीवन भर रेंगना सीखा था, वह भला क्या उड़ पाता? नीचे छोटी-छोटी चट्टानों पर धप्प से साँप जा गिरा। ईश्वर की कृपा से बेचारा बच गया, नहीं तो मरने में क्या कसर बाकी रही थी। साँप हँसते हुए कहने लगा-

“सो उड़ने का यही आनंद है- भर पाया मैं तो! पक्षी भी कितने मूर्ख हैं। धरती के सुख से अनजान रहकर आकाश की ऊँचाइयों को नापना चाहते थे। किंतु अब मैंने जान लिया कि आकाश में कुछ नहीं रखा। केवल ढेर-सी रोशनी के सिवा वहाँ कुछ भी नहीं, शरीर को सँभालने के लिए कोई स्थान नहीं, कोई सहारा नहीं।
साँप ने उड़ान भरने की कोशिश तो कि परन्तु जिसने अपने पूरे जीवन में केवल रेंगना सीखा था, वह भला कैसे उड़ सकता था? तो जैसे ही सांप ने उड़ने के लिए चट्टान के किनारे से उड़ान भरी वह नीचे छोटी-छोटी चट्टानों पर धप्प से जा गिरा। वह तो ईश्वर की दया थी जो वह बेचारा बच गया, नहीं तो बाज़ की तरह वह भी आज मौत का मुँह देखता। अपनी असफलता के बाद साँप हँसते हुए अपने आप से कहने लगा कि तो उड़ने का यही आनंद होता है, पक्षी भी कितने मूर्ख होते हैं। जो धरती के सुख को न जानकर न जाने आसमान को क्यों छूना चाहते हैं। परन्तु अब उसने तो यह जान लिया है कि आसमान में कुछ नहीं रखा है। वहाँ केवल बहुत सारी रोशनी है, उसके अलावा कुछ भी नहीं है, वहाँ तो शरीर को सहारा देने के लिए न तो कोई स्थान है और न ही कोई जगह।

फिर वे पक्षी किस बूते पर इतनी डींगें हाँकते हैं, किसलिए धरती के प्राणियों को इतना छोटा समझते हैं। अब मैं कभी धोखा नहीं खाऊँगा, मैंने आकाश देख लिया और खूब देख लिया। बाज तो बड़ी-बड़ी बातें बनाता था, आकाश के गुण गाते थकता नहीं था। 
जब साँप उड़ान भरने में नाकाम रहा तो वह पक्षियों को बुरा-भला कहने लगा कि आसमान में जब रोशनी के सिवा कुछ नहीं रखा है तो फिर वे पक्षी किस बात पर इतनी बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं और सब धरती के जिव-जंतुओं को इतना छोटा समझते हैं। अब वह कभी धोखा नहीं खाएगा क्योंकि अब उसने आसमान को बहुत अच्छी तरह से देख लिया है। साँप अब बाज को भी कोसता हुआ कहता है कि वह भी बेकार में ही आसमान के बारे में बड़ी-बड़ी बातें बनाता था, आकाश के गुण गाते थकता नहीं था और अंत में भी उड़ान भरने के कारण ही वह मौत के घर गया है।  

उसी की बातों में आकर मैं आकाश में कूदा था। ईश्वर भला करे, मरते-मरते बच गया। अब तो मेरी यह बात और भी पक्की हो गई है कि अपनी खोखल से बड़ा सुख और कहीं नहीं है। धरती पर रेंग लेता हूँ, मेरे लिए यह बहुत कुछ है। मुझे आकाश की स्वच्छंदता से क्या लेना-देना?
साँप बाज को दोषी ठहराते हुए कहता है कि वह उसी की बातों में आकर आकाश में उड़ने का आनंद लेने के लिए कूदा था। वो तो ईश्वर की उस पर कृपा रही कि वह मरते-मरते बच गया नहीं तो आज उस बाज़ के साथ मृत्यु को प्राप्त करता। अब तो साँप इस बात पर और भी अटल हो गया था कि उसकी गुफा से अधिक सुरक्षित जगह कहीं नहीं है और न ही गुफा से ज्यादा सुख और कहीं मिल सकता है। साँप के लिए यही बहुत था कि वह धरती पर रेंग लेता है। अब उसे आकाश की स्वतंत्रता से कुछ भी लेना-देना नहीं था। वह अपनी गुफा में ही खुश था। 

न वहाँ छत है, न दीवारें हैं, न रेंगने के लिए ज़मीन है। मेरा तो सिर चकराने लगता है। दिल काँप-काँप जाता है। अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है?’’
अब साँप आकाश में कमियाँ खोजता हुआ अपने आप से कहता है कि न तो उस आकाश में कोई छत है, न ही कोई दीवारें हैं, न तो उसके रेंगने के लिए कोई ज़मीन है। तो उसे वहाँ कैसे आनंद आ सकता है। उसका तो आसमान में दो पल में ही सिर चकराने लगा था। दिल काँप गया था। साँप अपने आप को सांत्वना देते हुए कहता है कि अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है? बाज़ की तरह ही कोई बेवकूफ होगा जो उड़ान भरने के लिए आपनी जान ही गवा दे। 

साँप सोचने लगा कि बाज अभागा था जिसने आकाश की आजा़दी को प्राप्त करने में अपने प्राणों की बाजी लगा दी। किंतु कुछ देर बाद सापँ के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उसने सुना, चट्टानों के नीचे से एक मधुर, रहस्यमय गीत की आवाज़ उठ रही है। 
साँप सोचने लगा कि बाज अभागा था, उसे किसी भी चीज़ का ज्ञान नहीं था क्योंकि उसने बिना सोचे-समझे आकाश की आजा़दी को प्राप्त करने में अपने प्राणों को भी न्योछावर कर दिया। अभी साँप यह सब सोच ही रहा था कि कुछ देर बाद सापँ ने कुछ सुना और उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उसने सुना, चट्टानों के नीचे से एक मधुर और रहस्य से भरा गीत सुनाई दे रहा था। वह हैरान था कि कौन इन चट्टानों के निचे से गा रहा है। 

पहले उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। किंतु कुछ देर बाद गीत के स्वर अधिक साफ़ सुनाई देने लगे। वह अपनी गुफा से बाहर आया और चट्टान से नीचे झाँकने लगा। सूरज की सुनहरी किरणों में समुद्र का नीला जल झिलमिला रहा था। 
जब साँप ने चट्टानों ने निचे से रहस्य से भरा गीत सुना तो पहले तो उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। क्योंकि उस जगह पर केवल वही रहता था तो यह गीत कौन गा रहा था? परन्तु कुछ देर बाद गीत के स्वर अधिक साफ़ सुनाई देने लगे। वह अपनी गुफा से बाहर आया, ताकि जो गीत गा रहा है उसे देख सके और  वह गीत गाने वाले को देखने के लिए चट्टान से नीचे झाँकने लगा। उसने देखा सूरज की सोने के सामान सुनहरी किरणों में समुद्र का नीला जल चमक रहा था। 

चट्टानों को भिगोती हुई समुद्र की लहरों में गीत के स्वर फूट रहे थे। लहरों का यह गीत दूर-दूर तक गूँज रहा था। साँप ने सुना, लहरें मधुर स्वर में गा रही हैं। हमारा यह गीत उन साहसी लोगों के लिए है जो अपने प्राणों को हथेली पर रखे हुए घूमते हैं। चतुर वही है जो प्राणों की बाजी लगाकर जिंदगी के हर खतरे का बहादुरी से सामना करे। 
साँप ने देखा कि चट्टानों को भिगाती हुई समुद्र की लहरों में वह गीत के स्वर फूट रहे थे, जो उसे सुनाई पड़े थे। लहरों का यह गीत हर दिशा में दूर-दूर तक गूँज रहा था। साँप ने सुना कि लहरें बहुत ही मधुर स्वर में गा रही हैं कि उनका यह गीत उन साहसी लोगों के लिए है जो अपने इरादों, अपनी स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की परवाह किए बगैर अपने प्राणों को हथेली पर रखे हुए घूमते हैं। साँप ने यह भी सुना कि लहरें गा रही थी कि चतुर वही है जो अपने प्राणों की बाजी लगाकर जिंदगी के हर खतरे का बहादुरी से सामना करे। जो अपनी जिंदगी को आजादी से जिए। 

ओ निडर बाज! शत्रुओं से लड़ते हुए तुमने अपना कीमती रक्त बहाया है। पर वह समय दूर नहीं है, जब तुम्हारे खून की एक-एक बूँद जिंदगी के अँधेरे में प्रकाश फैलाएगी और साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता और प्रकाश के लिए प्रेम पैदा करेगी।  तुमने अपना जीवन बलिदान कर दिया किंतु फिर भी तुम अमर हो।
साँप लहरों के गीत को सुन रहा था। लहरें बाज़ की बहादुरी के लिए भी गा रही थी कि हे बहादुर बाज़! तुमने अपने शत्रुओं से बहादुरी से लड़ते हुए अपना कीमती रक्त बहाया है। पर अब वह समय दूर नहीं है, जब उस बहादुर बाज़ के खून की एक-एक बूँद लोगों की जिंदगी से अँधेरे को मिटा कर प्रकाश फैलाएगी और साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता और प्रकाश के लिए प्रेम पैदा करेगी। ऐसा लग रहा था जैसे लहरें बाज़ की कुर्बानी के लिए उसका शुक्रियादा कर रही हो। लहरें बाज़ से कह रही थी कि उसने भले ही अपना जीवन बलिदान कर दिया हो परन्तु वह हमेशा अमर रहेगा क्योंकि उसने  आजादी, बहादुरी और निडरता को मरते दम तक नहीं छोड़ा। 

जब कभी साहस और वीरता के गीत गाए जाएँगे, तुम्हारा नाम बड़े गर्व और श्रद्धा से लिया जाएगा। ’’हमारा गीत जिंदगी के उन दीवानों के लिए है जो मर कर भी मृत्यु से नहीं डरते।’’
ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे लहरें बाज़ से कह रही हों कि जब कभी भी साहस और वीरता के गीत गाए जाएँगे, उसका नाम बड़े गर्व और श्रद्धा से लिया जाएगा। क्योंकि बाज़ ने भी हिम्मत और वीरता का उदाहरण प्रस्तुत किया था। अंत में लहरें कहती हैं कि उनका यह गीत जिंदगी के उन दीवानों के लिए है जो मर कर भी मृत्यु से नहीं डरते। जो मौत को सामने देख कर भी अपना रास्ता नहीं बदलते। 



बाज और साँप पाठ का सार 


निर्मल जी की इस कहानी के दो प्रमुख पात्र हैं – साँप और बाज़। साँप समुद्र किनारे पत्थरों में बनी अँधेरी गुफ़ा में रहता है। उसे इस बात की ख़ुशी है कि उसे न किसी से कुछ लेना है, न ही किसी को कुछ देना है। उसे उस स्थान पर कोई हानि नहीं पहुँचा सकता। एक दिन एक घायल बाज उसकी गुफा में आ गिरता है। बाज साँप को बताता है कि उसका अंतिम पल आ गया है, पर उसने अपने जीवन के हर पल का आंनद उठाया है। 

बाज साँप को कहता है कि आकाश में उड़ना आनन्ददायक होता है। बाज को साँप की गुफा की दुर्गन्ध अच्छी नहीं लगती। वह एक अंतिम बार उड़ान भरना चाहता है। साँप अपने को बचाने के प्रयास से तथा अंतिम इच्छा पूरी करने के लिये बाज को उड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है, किन्तु उड़ने के प्रयास में बाज नदी में गिर जाता है और बहता हुआ समुद्र में गायब हो जाता है। 

साँप हैरान होता है की आकाश में उड़ने का मजा क्या होता है जिसके लिये बाज ने अपने प्राण त्याग दिए। साँप के मन में भी उड़ने की इच्छा जागती है। वह उड़ने के लिये अपने शरीर को हवा में उछालता है, तो ज़मीन पर गिर जाता है, किन्तु बच जाता है । वह सोचता है आकाश में कुछ नहीं है, सुख तो ज़मीन में है। इसलिये वह फिर उड़ने का प्रयास नहीं करेगा। 

साँप ने कुछ समय बाद सुना जैसे लहरें बाज को श्रद्धांजलि दे रहीं थी, जिसने वीरता से अपने प्राणों की बाजी लगा दी। लेखक कहते हैं वास्तव में जीवन उन्हीं का है जो उसे दाव पर लगा कर चलते हैं। जो मौत को सामने देख कर भी अपना रास्ता नहीं बदलते। 




जय हिन्द : जय हिंदी 
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